षटतिला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. उसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत क संकल्प करें. भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। उसके बाद गंगाजल में तिल मिलाकर तस्वीर पर छींटे दे और उन्हें पुष्प ,धूप आदि अर्पित करें। फिर भगवान विष्णु सहस्नाम का पाठ करें और आरती उतारें। उसके बाद भगवान को तिल का भोग लगाएं। इस दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की आराधना करें , साथ ही रात्रि में जागरण और हवन करें। . इसके बाद द्वादशी के दिन प्रातः कल उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं। पंडितों को भोजन कराने के बाद स्वयं अन्न ग्रहण करें। मान्यता है की माघ मास में जितना तिल का दान करेंगे उतने हज़ारों साल तक स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त होगा।
षटतिला एकादशी कथा (Shattila Ekadshi Katha )
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक समय नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान विष्णु से षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा। नारद जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने बताया की प्राचीन कल मेपृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी। उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। वह मेरी अन्य भक्त थी और श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी। एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की।